लोगों की राय

आचार्य श्रीराम शर्मा >> व्यक्तित्व परिष्कार की साधना

व्यक्तित्व परिष्कार की साधना

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :32
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15536
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

नौ दिवसीय साधना सत्रों का दर्शन दिग्दर्शन एवं मार्गदर्शन

3

आत्मबोध की साधना


प्रात: आँख खुलते ही यह साधना की जाती है। रात्रि में नींद आते ही यह दृश्य जगत समाप्त हो जाता है। मनुष्य स्वप्न-सुषुप्ति के किसी अन्य जगत में रहता है। इस जगत में पड़े हुए स्थूल शरीर से उसका सम्पर्क नाम मात्र का, काम चलाऊ भर रह जाता है। जागते ही चेतना का शरीर से सघन सम्पर्क बनता है, यह नये जन्म जैसी स्थिति होती है।

जागते ही पालथी मार कर बैठ जायें, ठंडक हो तो- वस्त्र ओढ़े रहें। दोनों हाथ गोदी में रखें, सर्वप्रथम लम्बी श्वांस लें, नील वर्ण प्रकाश का ध्यान करें, नाक से ही श्वास छोड़ें, दूसरी श्वांस में पीले प्रकाश का ध्यान करते हुए पूर्ववत् क्रिया दोहरायें, तीसरी बार फिर रक्तवर्ण प्रकाश का ध्यान करते हुये गहरी श्वास खींचें, धीरे धीरे नाक से ही श्वांस छोड़ दें। स्वस्थ प्रसन्नचित्त हो अनुभव करें कि परमात्मा ने कृपा करके हमें आज नया जन्म दिया है। इसकी अवधि पुन: निद्रा की गोद में जाने तक की है। दाता देख रहा है कि उनका यह पुत्र इस जीवन का कैसा उपयोग करता है? हम उसके प्रिय पुत्र हैं-नैष्ठिक साधक हैं उसकी योजना के अनुसार ऐसा जीकर दिखायेंगे कि उसकी आँखें प्रसन्नता से चमक उठें।

इस स्तर का सार्थक जीवन जीना तभी संभव है, जब अपने अधिकार में आये शरीर, इन्द्रियों, मन, बुद्धि भावना, किया, समय सबको परमात्मा के अनुशासन में बांधकर रखा जाय। इन्हें अनुशासनबद्ध रखने योग्य शक्ति भी उसी नियन्ता से प्राप्त होगी, किन्तु उसके लिए मात्र कल्पना स्तर का चिन्तन पर्याप्त नहीं, उसे संकल्प, उमंग, उत्कंठा स्तर का बनाना होता है।

आज के नये जन्म के लिए भगवान का आभार मानते हुए साधक के अनुरूप दिनभर के क्रिया-कलापों का खाका मस्तिष्क में बनाना चाहिए। प्रार्थना करनी चाहिए हे-प्रभु! आपने हमें जो दुर्लभ शरीर-विभूतियाँ एवं अवसर सहित यह जीवन दिया है, उसे हम सार्थक बनाने का संकल्प लेते हैं। हे दाता! आपने जिस उदारता में यह सब दिया है, हम उसे उसी स्तर की तत्परता के साथ उपयोग में लायेंगे। हम अपनी सामर्थ्य भर कोई कोर -कसर नहीं रहने देंगे। आप हमें शक्ति देना।

जागरण के साथ आश्रम में होने वाली प्रार्थना- वह शक्ति हमें दो दयानिधे, कर्तव्य मार्ग पर डट जावें - इसी आत्मबोध साधना से जुड़ी उल्लास भरी अभिव्यक्ति की प्रतीक है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. नौ दिवसीय साधना सत्रों का दर्शन दिग्दर्शन एवं मार्गदर्शन
  2. निर्धारित साधनाओं के स्वरूप और क्रम
  3. आत्मबोध की साधना
  4. तीर्थ चेतना में अवगाहन
  5. जप और ध्यान
  6. प्रात: प्रणाम
  7. त्रिकाल संध्या के तीन ध्यान
  8. दैनिक यज्ञ
  9. आसन, मुद्रा, बन्ध
  10. विशिष्ट प्राणायाम
  11. तत्त्व बोध साधना
  12. गायत्री महामंत्र और उसका अर्थ
  13. गायत्री उपासना का विधि-विधान
  14. परम पू० गुरुदेव पं० श्रीराम शर्मा आचार्य एवं माता भगवती देवी शर्मा की जीवन यात्रा

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai